सोमवार, 12 सितंबर 2011

सपने अपने





















क्या सपने हैं जो
खुली आँखों से देखती हो
तुम्हारी बंद पलकों में छिपे
सपनों का आदी हो गया हूं
क्या अनकही है अधखुले होंठों पर रुके
तुम्हारी ख़ामोशी का कायल हो चुका हूं...
न सपने दिखाओ तुम, न अपनापन
कि सपने टूट जाते हैं, और
वक़्त का तकाज़ा है
कि अपने छूट जाते हैं...



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