सोमवार, 12 सितंबर 2011
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मन के अँधेरे की चादर में डर की कितनी ही चुड़ैलें छुपी रहती हैं एक बच्चे के मन के लिए... किशोरावस्था में यही मन चुडैलों के प्रेम पाश में फँस जाता है... अँधेरे की चादरों में लिपटी हुई चुड़ैलें... और रौशनी की दुनिया में तैरती, मचलती चुड़ैलें... एक ही चुड़ैल ने साथ दिया एकांत के पलों में.... मन में छुपी कल्पना की चुड़ैल जो रह रह कर उकसाती थी... मेरी कहानी लिखो... मेरे बारे में लिखो...
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