रविवार, 25 जुलाई 2010

रुक क्यों गए

फिर कई दिनों के बाद एक दोस्त ने पुछा, 'आप रुक क्यों गए?'
सोचने लगा कि मैं कहाँ रुका... न मैं रुका, न समय। जो रुक गयी थी वह थी विचारों कि एक श्रंखला... केवल इस लिए कि उसकी एक कड़ी टूट गयी थी। टूटी हुई उस कड़ी के टुकड़े बिखर गए हैं... ढूँढता हूँ पर सभी टुकड़े नहीं मिल रहे ताकि कड़ी को जोड़ कर विचारों कि उस श्रंखला को जारी रखूं...
आखिर हमारा अस्तित्व ही क्या है? विचार ही तो हमारा अस्तित्व है... यादों में ही तो हम जीते हैं, इस भौतिक अस्तित्व के मरने के बाद भी... हम से पहले जो भी आये और गए इस दुनिया से होते हुए वह केवल विचारों और यादों में ही तो जीवित हैं... भौतिक अस्तित्व मिथ्या है और विचार सत्य... लेकिन सत्य को समझने के लिए भौतिक अस्तित्व जरूरी है... सत्य को समझने के लिए मिथ्या जरूरी है!