सोमवार, 2 अगस्त 2010

दीमक

खबरों कि दुनिया से खबर आई कि लिखते रहिये, कम से कम इस दुनिया में दीमकों कि कमी नहीं है... सच कहा... कलम कागज़ लेकर जो कुछ लिखा था वह सब दीमकों को प्यारी हो गयी , लेकिन यह नहीं पता था कि वेब कि दुनिया में भी दीमक होते हैं.... इस इंतज़ार में कि कोई कुछ लिखे जो न पढने लायक हो तो चबा ही लिया जाय...
कलम छोड़ कर चावीपटल पर उंगलियाँ सिर्फ इसलिए पटकने लगा था कि वेब दुनिया में एक वेब बुनू जिसमे शायद कोई इक्का दुक्का फंसे और मजबूर होकर पढ़े... एक मकड़े की तरह अपने शब्दों का जाल बुन कर बैठा रहा महीनो तक.... तब जाकर कोई फंसा... खबरों कि दुनिया से...
ऐ खबरों कि दुनिया से उभरे दोस्त, तुम्हे सलाम...
बस यूँ ही लिखता रहूँगा, बुनता रहूँगा किस्से कहानियां और इंतज़ार करूँगा अपने बुने हुए इस जाल में किऔर भी कोई आये इधर अकेले.... भटकते हुए...