रविवार, 11 सितंबर 2011

सुनी सुनाई बातें

सुनी सुनाई बातें हैं कि
हम कभी गुलाम थे
आधे अधूरे किस्से भी हैं
जंग- ऐ -आज़ादी के
सुनते थे जो हम कभी
दादाजी की बोली में
गूंजती थी नानाजी की
कोठी की दीवारों में
मामाजी की कविताओं में
और मामीजी की लोरी में
काकाजी की बड बड में
और काकीजी के गुस्से में...

आज़ादी में पैदा हम तुम,
आज़ादी में पले बढे
धीरे धीरे उतर गए हम अपनी
करतूतों की खायी में,
एक अन्नाजी ही खड़े हुए हैं
खायी के किनारे पर, क्योंकि
जगह नहीं है उनके लिए
बापूजी के घाट पर,
बाबाजी पिट गए बेचारे
अनशन के चौराहे पर...

गौरव का वह आसमान अब
दूर कहीं चमकता है
वहां फहराता तिरंगा भी
एक तिनका जैसा लगता है
फिर ढून्ढ रहे हम पंखों को
उड़ने की तमन्ना है
हिन्दुस्तानी बनकर फिर से
दूर तिरंगा छूना है...
बस फिर से जय हिंद कहना है...
बस फिर से जय हिंद कहना है...



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